भारत में बनाए गए 5 वस्त्र - सुन्दर बनावट, शिल्प कौशल और तकनीकों को जानें
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व्यापार से लेकर फैशन तक, भारतीय वस्त्र और कपड़े हमेशा दुनिया भर से बहुत अधिक ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे हैं। भारत को भव्य संस्कृति, गौरवशाली विरासत और शानदार वस्त्रों और कपड़ों की भूमि माना जाता है। हमारे देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सभी क्षेत्र अपने कपड़ा उद्योगों से भरे हुए हैं और कारीगर कपड़ों को अपनी रूप-रेखा और बुनाई की कला से चित्रित कर रहे हैं। हमारे देश का हर नुक्कड़ और कोना किसी न किसी विरासत के साथ संवर्धित है जिसे आज तक आगे ले जाया जा रहा है। और हम गर्व से कह सकते हैं कि कपड़ा और कपड़ा उद्योग इस छत्र के नीचे आने वाले एक प्रमुख भाग हैं।
स्रोत - रेड्डिट
आप फैशन के शौकीन हैं या नहीं, भारत में बने कपड़ों की दृष्टि और स्पर्श आपके होश उड़ा देंगे। आपने हमेशा सोचा होगा कि आपकी माँ की अलमारी में कौन सी साड़ियाँ हैं जो 'विशेष अवसरों' के लिए हैं, है ना? वे उन कपड़ों से बने हैं जो सच्चे भारतीय मूल्यों, संस्कृतियों और परंपराओं से बुने जाते है। हमारे देश के शिल्पकारो ने अत्यंत जोश और उत्साह के साथ उन सभी भव्य साड़ियों में एक कहानी बुनी हैं।
कपड़ा और वस्त्र उद्योग इतना विशाल है कि यह न केवल दुनिया के सबसे बड़े कपड़ा क्षेत्रों में से एक है, बल्कि एक बड़ी संख्या में नागरिकों और उनके परिवारों के लिए रोज़ी रोटी का माध्यम भी है। आइए आगे बढ़ते हुए भारत में पाए जाने वाले विभिन्न कपड़ों और वस्त्रों के समुद्र में गोता लगाएँ और उनमें से कुछ की विपुल तकनीकों और शिल्प कौशल के बारे में जानें!
लखनऊ, उत्तर प्रदेश से चिकनकारी कढ़ाई
स्रोत- अदाह बेस्पोक चिकनकारी
अपनी शानदार नवाबी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध, उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर ने रेशमी या सिल्क धागे का उपयोग करके कढ़ाई के इस अत्यंत जटिल रूप को जन्म दिया है। ऐसा कहा जाता है कि कढ़ाई के इस रूप को नूरजहाँ ने ईजाद किया था और तब से इस प्रकार की कढ़ाई अस्तित्व में आयी। इसे 'चिकनकारी' काम के रूप में जाने जाना लगा। इस कढ़ाई के रूपांकन और प्रतिरूप प्रकृति में मौजूद सुंदर लताओं, फूलों और पत्तियों से प्रेरित हैं। यह सिलाई की तकनीक का उपयोग करके मुलायम कपड़ों पर प्रकृति के नाज़ुकता की नकल करने की एक प्रक्रिया है। चिकनकारी काम वाली कोई भी चीज पहनकर कोई भी शाही नवाब से कम नहीं लगता।
चिकनकारी पैचवर्क बनाने के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक बेहद जटिल है और रेशम या सूती धागे से की जाती है। प्रतिरूप और रूपांकनों को हल्के रंग के कपड़े जैसे मलमल, जॉर्जेट, कपास या रेशम पर बुना जाता है। फैशन के साथ कदम मिलाने के लिए चिकनकारी काम में इस्तेमाल किए गए प्रतिरूप, रंग और कपडे में भी कई बदलाव देखे गए हैं।
वाराणसी, उत्तर प्रदेश से बनारसी रेशम और जरी वस्त्र
स्रोत- पीचमोड
गंगा नदी के किनारे बसे एक शहर ने चांदी और सुनहरे रंगों में सुंदर जटिल जरी या ब्रोकेड के साथ महीन रेशमी कपड़े बुनने की कला का पालन-पोषण किया है। बनारसी सिल्क की साड़ियां अपने नाजुक लेकिन शाही दिखावट के लिए दुनिया भर में मशहूर हैं। इन ज़री से बानी हुई सदियों की प्रेरणा सुंदर पुष्प, मुगल और पत्तेदार रूपांकनों से ली गई है, और इन्हें दो समृद्ध रंगों के कपड़ों में बुना जाता है।इस शहर के शिल्पकारों 'मीनाकारी' के कौशल का इस्तेमाल करके बनारसी रेशम को शाही और रानी रूप दीया है। गंगा नदी के घाट और बनारसी रेशम के जरी वस्त्र इस शहर के दो रत्न हैं।
बनारसी रेशम के काम की प्रसिद्ध जांगला तकनीक धागों को करघे के ऊपर से जोड़कर और उनके संबंधित सिरों को ताने से जोड़कर की जाती है। यह काम रेशमी कपड़ों पर रूपांकनों की जटिल बुनाई की मांग करता है। यह भी शहर के शिल्पकारों द्वारा अपनाई जाने वाली सबसे पुरानी तकनीकों में से एक है।
मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल से बालूचरी और स्वर्णचारी रेशम
स्रोत - बुद्ध एंड बियॉन्ड
स्रोत - पिनटेरेस्ट
पल्लू पर प्रदर्शित होने वाली पौराणिक आकृतियों की पूरी कहानी के साथ तेजतर्रार रेशम की साड़ियों को पश्चिम बंगाल की भव्य बालूचरी और स्वर्णचारी रेशम साड़ियों के रूप में जाना जाता है। ये साड़ियाँ नवाब और उनकी पत्नी के दृश्यों और चित्रणों को याद करती हैं। बलूचरी साड़ियों के पल्लू को धागे से बुना जाता है और दूसरी ओर स्वर्णचारी साड़ियों के पल्लू को सोने की जरी से बनाया जाता है। ये साड़ियाँ फिर से भारतीय वस्त्रों की प्रचुरता और विलासिता को दर्शाती हैं।
बालूचरी साड़ियों के पल्लू लम्बे होते हैं ताकि धागो के साथ पौराणिक दृश्यों को दर्शाया जा सके। धागों के रंग पल्लू के रंग पर निर्भर होता हैं। स्वर्णचारी साड़ियों के निर्माण में सोने की जरी का सम्मिश्रण शामिल होता है जिससे पौराणिक दृश्यों के प्रतिरूप और आंकड़े बनते हैं। इन दोनों साड़ियों के पल्लू पर की गयी मीनाकारी भारतीय सुंदरियों को अलंकृत करने में बाखूबी सफल होती है।
गुजरात से बांधनी
स्रोत - आरजे फैशन
बांधनी या टाई एंड डाई एक प्रकार का वस्त्र है जो कपड़ों पर समृद्ध रंग, प्रतिरूप और दर्पण के काम का एक उदाहरण है। सभी रंगों और चमक वाले इस खूबसूरत वस्त्र की उत्पत्ति गुजरात और राजस्थान के समृद्ध राज्यों से हुई है। गुजरात में खत्री समुदाय ने सबसे पहले इस कपड़े का निर्माण शुरू किया था। बांधनी 'बंधन' शब्द से बना एक नाम है, जिसका असल में अर्थ होता है 'बांधना'। इस तरह से इस कपड़े को बनाने की कला और तकनीक राज्य में शुरू हुई और जगमगाते रंगों और दर्पणों के जुड़ने से वस्त्र के पूरे रंग-रूप में निखार आया है।
टाई और डाई के लिए कई तरीके और तकनीकें हैं जैसे ओम्ब्रे, सनबर्स्ट, फोल्डिंग, आदि। आवश्यक आकर के आधार पर, कपड़े को रंगने की तकनीक इस्तेमाल की जाती है।एक प्राचीन कला होने के नाते, लगभग 5000 साल पहले शुरू हुई बांधनी, भारत के साथ-साथ समुद्र के पार सभी देशो में एक बहुत प्रसिद्ध और नामचीन वस्त्र है। इससे बनी पोशाक पहनने से किसी भी व्यक्ति का रूप खिल उठता है।
औरंगाबाद, महाराष्ट्र से पैठनी रेशम
स्रोत - खिनख्वाब
पैठनी रेशम की साड़ी बुनने की कला 2000 साल से भी अधिक पुरानी है और इस कला का दायरा समय के साथ विस्तृत होता गया है। पैठनी रेशम पर जरी का काम इस साड़ी को पूरी तरह से पारंपरिक समृद्ध वस्त्र बनाता है। साड़ी दोनों तरफ एक जैसी दिखती है और पल्लू पर जरी से बुनी गई आकृति मोर, लताओं, पक्षियों और फूलों की होती है। एक पैठनी साड़ी को बनाने में कई दिन लगते हैं क्योंकि कारीगर इसे पुरानी और पारंपरिक तकनीको से बुनते हैं। पैठनी साड़ी महाराष्ट्र की महिलाओं के लिए एक दिल की धड़कन की तरह है और आप सभी पारंपरिक मराठी परिवारों की अलमारी में कम से कम एक पैठनी रेशम साडी ज़रूर देखेंगे।
जरी से चित्र बनाने की लिए बाने के धागों का उपयोग करके पैठनी रेशम बनायीं जाती है। रंगों को स्पष्ट रूप उभारने के लिए शुद्ध सुनहरे कपडे पर बहुरंगी धागों का उपयोग करके जटिल और नाजुक प्रतिरूप बनाए जाते हैं। एक खूबसूरत पैठनी रेशम की साड़ी बनाने की कला एक विरासत की तरह है जिसे अपने बेहतरीन रूप में जारी रखा जा रहा है!
इस प्रकार, भारत के सभी कपड़ों और वस्त्रों की खोज एक पूरी यात्रा है और हमने अभी तो बस इसकी शुरुआत की है! हम इस कारवां को जारी रखेंगे और आपके लिए सभी भव्य कपड़ों के साथ-साथ उनकी शिल्प कौशल और तकनीकों को उजागर करते रहेंगे। तब तक, यहां बताये गए वस्त्रो के बारे में और जानने की खोज जारी रखिये और आनंद ले।
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Frequently Asked Questions (FAQs)
Q1. भारत में बनने वाले कुछ फैब्रिक्स (fabrics in India) के क्या नाम हैं?
Ans. भारत के विभिन्न कोनों में अत्यंद सुंदर फैब्रिक बनाए जाते हैं जैसे लखनऊ से चिकनकारी कढ़ाई, वाराणसी से बनारसी रेशम और जरी वस्त्र, मुर्शिदाबाद से बालूचरी और स्वर्णचारी रेशम एवं औरंगाबाद से पैठनी रेशम।2. भारत के कुछ मशहूर टैक्सटाईल (famous textiles in India) कहाँ पाए जाते हैं?
Ans. भारत के लगभग सभी प्रदेशों में मशहूर टैक्सटाईल पाए जाते हैं जैसे लखनऊ, उत्तर प्रदेश से चिकनकारी कढ़ाई, वाराणसी, उत्तर प्रदेश से बनारसी रेशम और जरी वस्त्र, मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल से बालूचरी और स्वर्णचारी रेशम, गुजरात से बांधनी, औरंगाबाद, महाराष्ट्र से पैठनी रेशम आदि।
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