गुरु पूर्णिमा विशेष- महत्त्व और संपूर्ण जानकारी!

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Highlights हिंदू धर्म में गूर पूर्णिमा का खास महत्व है। प्राचीन काल से गुरु पूर्णिमा महर्षि वेद व्यास की स्मृति में मनाया जाता रहा है। ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि इस दिन गुरु की सच्चे मन से सम्मान करने पर शिष्य को वेद व्यास का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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इस साल बुधवार के दिन 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के उत्सव मानाया जाएगा। भारतवर्ष के कई राज्यों में गुरुपूर्णिमा के दिन को पूरे हर्षो-उल्लास से मनाया जाता है। 

आषाढ़ महीने के अंतिम दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मानाया जाता है। वर्ष भर में कई पूर्णिमा की रातें होती हैं, लेकिन गुरु पूर्णिमा का महत्व इन सब में सबसे अधिक माना गया है। 

ऐसा माना जाता है सच्चे मन से गुरु पूर्णिमा के दिन आराधना करने वालों भक्तों को वर्ष के हर पूर्णिमा का लाभ प्राप्त हो जाता है। आइए जानते हैं गुरु पूर्णिमा का महत्व क्या और इसे कब से और क्यूं मानाया जाता है और इस दिन पूजा किस तरह से करनी चाहिए?

Maharishi Vedvyas Ji

गुरु पूर्णिमा क्यूं मनाया जाता है? 

प्राचीन काल से गुरु के सम्मान में गुरु पूर्णिमा मनाया जाता रहा है। हिंदू धर्म में गुरु को विशेष दर्जा दिया है क्योंकि गुरु ही शिष्य को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में लेकर आते हैं। 

गुरु पूर्णिमा महर्षि वेद व्यास जी की आराधाना के लिए मनाया जाता है। माना जाता है कि उनका जन्म इसी दिन हुआ था। वेद व्यास जी ने महाभारत समेत कई ग्रंथों की रचना की। उनकी याद में ये दिन प्राचीन काल से आज तक पूरी श्रद्धा से मनाया जाता जा रहा है।

वेद व्यास जी के अनेक शिष्यों में पाँच शिष्यों ने प्राचील काल में उनकी विधि-विधान से पूजा की थी। शिष्यों ने उनपर पुष्प अर्पण कर के उनके पैर छूए थे। इन परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आज के समय में भी शिष्य अपने गुरुओं की पूजा करते हैं। 

Guru Purnima Shlolk

गुरु पूर्णिमा का महत्व क्या है? 

शास्त्रों में गुरु की तुलना ब्रम्हा, विष्णु और महेश से की गई है । गुरु को भगवान समान माना गया है। गुरु शिष्य को सही मार्ग दिखाकर, ज्ञान का दीप जलाकर, बुद्धिमान बनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अगर अपने गुरु का सम्मान करें तो उसे खूब आशीर्वाद मिलता है। 

ग्रंथों में ऐसा लिखा गया है कि गूर पूर्णिमा के दिन अगर शिष्य अपने गुरु को फल, फूल, आभूषण, गाय, रत्न आदि अर्पित करता है तो वेद व्यास जी खुद गुरु के रूप में शिष्य को दर्शन देते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह नहा-धोकर एक बार वेद व्यास जी की अराधाना करने से और गुरु को कुछ उपहार देने से शिष्य को आशीर्वाद प्राप्त होता है।

गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा कैसे करें? 

  • सबसे पहले सुबह उठकर पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें। 
  • वैसे तो इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अलग होता है लेकिन आप घर पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं। 
  • नहाने के बाद साफ कपड़े पहनें और मंदिर में दीप जलाएं। 
  • अगर संभव को तो गुरु पूर्णिमा के दिन व्रत भी रखें। 
  • मंदिर में सभी देवी-देवताओं को जल अपर्ण करें। 
  • सभी भगवान की आराधना के साथ-साथ, महर्षि वेद व्यास जी की भी सच्चे मन से आराधना करें। 
  • इसके बाद अपने गुरु को सम्मानपूर्वक याद करें। 
  • इस दिन जरूरतमंदों की मदद करें और हो सके तो गाय को भोजन दें। 
  • शाम के वक्त पूर्णिमा के चंद्रमा की भी पूजा करें, इससे विशेष फल प्राप्त होता है।

गुरु पूर्णिमा के दिन किस मंत्र का जाप करें?

गुरु पूर्णिमा के दिन इस मंत्र का जाप जरूर करें : - 

गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः!

इसका अर्थ है गुरु की ब्रम्हा हैं, गूर ही विष्णु हैं, गुरु के अंदर की भगवान शंकर हैं। मैं ऐसे गुरु को हाथ जोड़कर नमन करता/करती हूँ।

सारांश : - 

हिंदू धर्म में गूर पूर्णिमा का खास महत्व है। प्राचीन काल से गुरु पूर्णिमा महर्षि वेद व्यास की स्मृति में मनाया जाता रहा है। ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि इस दिन गुरु की सच्चे मन से सम्मान करने पर शिष्य को वेद व्यास का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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गुरु पूर्णिमा 2022 कब है?
इस साल बुधवार के दिन 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के उत्सव मानाया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा क्यूं मनाया जाता है?
<p>प्राचीन काल से गुरु के सम्मान में गुरु पूर्णिमा मनाया जाता रहा है। हिंदू धर्म में गुरु को विशेष दर्जा दिया है क्योंकि गुरु ही शिष्य को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में लेकर आते हैं।</p><p>गुरु पूर्णिमा महर्षि वेद व्यास जी की आराधाना के लिए मनाया जाता है। माना जाता है कि उनका जन्म इसी दिन हुआ था। वेद व्यास जी ने महाभारत समेत कई ग्रंथों की रचना की। उनकी याद में ये दिन प्राचीन काल से आज तक पूरी श्रद्धा से मनाया जाता जा रहा है।</p><p>वेद व्यास जी के अनेक शिष्यों में पाँच शिष्यों ने प्राचील काल में उनकी विधि-विधान से पूजा की थी। शिष्यों ने उनपर पुष्प अर्पण कर के उनके पैर छूए थे। इन परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आज के समय में भी शिष्य अपने गुरुओं की पूजा करते हैं। </p>