केवल बच्चा ही नहीं, मां के लिए भी फायदेमंद है ब्रेस्टफीडिंग

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मां का दूध एक नवजात शिशु की सेहत और इम्यूनिटी का खज़ाना होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी कि डब्ल्यूएचओ  भी कम से कम छह महीने तक स्तनपान कराने की सलाह देता है। ऐसा माना जाता है कि जब मां अपने बच्चे को स्तनपान कराती है तो उसे दोनों को ही फायदा होता है। लंबे वक्त से गर्भ में पल रहे बच्चे का चुढ़ाव मां से ज्यादा होता है। जब बच्चा मां की गोद में होता है तो स्किन टू स्किन टच से वह सेफ महसूस करता है। इतना ही नही, बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने से उसमें अस्थमा और कैंसर का खतरा कम होता है और बच्चे को वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद मिलती है। 

a woman breastfeeding her baby

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, जो बच्चे समय से पहले, कम वजन वाले या बीमार पैदा होते हैं, उन्हें विशेष रूप से स्तनपान कराया जाना चाहिए। मां के दूध के अनगिनत फायदे हैं। आज हम बात करेंगे ब्रेस्टफीडिंग के फायदों के बारे में।

बच्चे के लिए स्तनपान के फायदे

  • डिलीवरी के तुरंत बाद मां के स्तन से कोलोस्ट्रम निकलता है। कोलोस्ट्रम आपके बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करता है और उनके विकास में सहायता करता है। 
  • मां का दूध हमेशा ताजा, पूरी तरह से साफ, बिल्कुल सही तापमान वाला के साथ बच्चे की सेहत के लिए स्वास्थ्यवर्धक विकल्प होता है।
  • ब्रेस्टमिल्क आपके बच्चे के लिए जेनेटिक रूप से विशिष्ट होता है, और यह आपके बच्चे की ज़रूरत को पूरी तरह से पूरा करता है।
  • इसमें मौजूद प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, एंटीऑक्सिडेंट, एंजाइम और मिनरल बच्चे की सेहत के लिए सही संतुलन में होते है। जो उसके विकास के लिए बहुत ज़रूरी है।
  • शुरू के लगभग पहले 6 महीनों तक, बच्चे को केवल मां के दूध से ही सभी आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। यदि आप अपने बच्चे को केवल ब्रेस्टमिल्क पिलाएंगी और कोई सॉलिड, पानी या अन्य तरल पदार्थ नहीं देंगी तो आपका शिशु अच्छी तरह से विकसित होगा।
  • बच्चे के लिए मां का दूध पचाने में आसान होता है। यह आपके बच्चे के सिस्टम में आसानी से अवशोषित हो जाता है।
  • जैसे-जैसे आपके बच्चे की ज़रूरतें बदलती हैं, आपका स्तन का दूध भी बदलता जाता है। पहले तीन महीनों में मां के दूध में फैट अधिक और पानी कम होता है। तीन महीने के बाद इसमें पानी अधिक और फैट कम हो जाता है।
  • ब्रेस्टमिल्क से बच्चों के शरीर में पानी की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि मां का दूध ही उनकी इस कमी को पूरा करता है। हालांकि, ब्रेस्टफीड के दौरान लगभग एक साल तक बच्चे को विटामिन डी की ड्रॉप देने की सलाह दी जाती है।
  • मां का दूध पीने वाले बच्चे जल्दी सो जाते हैं। जब आपका बच्चा दूध पीता है तो उसके शरीर में ऑक्सीटोसिन का उत्पादन होता है जिससे उसे बाद में नींद आने लगती है।  
  • मां के दूध में एंटीबॉडीज होते हैं, जो आपके बच्चे को बीमारी से बचाते हैं। इसमें इम्युनोग्लोबुलिन ए (आईजीए) भी होता है, जो बच्चे को पाचन तंत्र के किसी भी संक्रमण से बचाने के लिए उसकी आंत पर परत चढ़ाता है। IgA बच्चे को रक्त प्रवाह में प्रवेश करने वाले किसी भी एलर्जी और संक्रमण से भी बचाता है। इसके अतिरिक्त जब माँ बीमार होती है, तो वह अपने शरीर में एंटीबॉडी बनाती है जो स्तन के दूध के माध्यम से गुजरती है और बच्चे को उस बीमारी से बचाती है।
  • कोलोस्ट्रम और मैच्योर ब्रेस्टमिल्क दोनों में एंटीबॉडी, अच्छे बैक्टीरिया और अन्य चीजें होती हैं जो आपके बच्चे के संक्रमण और गैस्ट्रोएंटेराइटिस, रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, कान के संक्रमण, टाइप -1 डायबिटीज और टाइप-2 डायबिटीज, मोटापा और कुछ कैंसर जैसी स्थितियों के जोखिम को कम करते हैं।

माताओं के लिए ब्रेस्टफीडिंग के फायदे 

  • स्तनपान से निकलने वाले हार्मोन के कारण आपका गर्भाशय बेहतर तरीके से सिकुड़ता है। यह डिलीवरी के बाद खून की कमी को कम करता है और आपके हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाए रखता है। खून की कमी को कम करने का एक और तरीका यह है कि ब्रेस्टफीडिंग कराने से पीरिसड कम से कम एक साल देरी से होते हैं।
  • स्तनपान एक काफी सुविधाजनक प्रक्रिया है। इसके लिए आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती, न ही किसी उपकरण की आवश्यकता होती है। अगर आप कहीं बार हैं तो भी आसानी से बच्चे को दूध पिला सकती हैं। 
  • ब्रेस्टफीडिंग आपको ब्रेस्ट कैंसर के साथ ओवेरियन और गर्भाशय के कैंसर से भी बचाता है।
  • कई महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान जेस्टेशनल डायबिटीज की परेशानी हो जाती है, जिसमें  डिलीवरी के बाद ज्यादा ट्रीटमेंट की ज़रूरत नहीं होती है। ब्रेस्टफीडिंग कराने से महिलाओं को  डायबिटीज विकसित होने की संभावना कम होती है।
  • ब्रेस्टफीडिंग से हर दिन 500-600 कैलोरी बर्न होती है। जिससे कुछ महिलाओं को जन्म के बाद वजन कम करने में मदद मिल सकती है। 

ब्रेस्टफीडिंग के लिए अपनाएं ये पोजीशन 

ब्रेस्टफीड कराने के लिए मां कई अलग-अलग पोजीशन ट्राई कर सकती है। जिनकी मदद से आप किसी एक को चुन सकें।

  • जब भी आप दूध पिलाएं और सबसे पहले खुद कंफर्टेबल रहें, अगर आप सही से बैठी होंगी तो बच्चे को भी कोई परेशानी नहीं होगी। यदि आवश्यक हो तो तकिए या कुशन का प्रयोग करें। 
  • ध्यान रहे कभी भी बच्चे को दूध पिलाते वक्त आप उस झूकें नहीं, अपनी गर्दन और कमर को पीछे की ओर आराम दें और बच्चे को आसानी से दूध पीने दें।
  • बच्चे को सिर और शरीर एक सीधी रेखा में होना चाहिए, वरना उसे दूध निगलने में परेशानी हो सकती है।
  • दूध पिलाते वक्त बच्चे को अपने स्तन की ओर मुंह करने के आलाव, उसकी गर्दन, कंधों और पीठ को भी सहारा दें।
  • बच्चे को निप्पल के पास का एक बड़ा कौर उसके मुहं में दें। इससे मां को दर्द महसूस नहीं होगा। ध्यान रहे हमेशा उसकी नाक दबे नहीं, इससे उसे सांस लेने में परेशानी हो सकती है।

 

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